(वरिष्ठ पत्रकार नारायण सिंह ठाकुर की कलम से)
दमोह । शुक्रवार सुबह समाचार-पत्र में गुरूवार की रामकथा की खबर पढ़ने के बाद स्नान की तैयारी में था । तभी, तीन साल का मेरा पोता, लाड़ से मेरे पैरों से लिपटकर चिल्लाया- “अय, मेरे दमोह के पागलो ! शांत हो जाओ !” गोलू अभी स्कूल भी नहीं जाता। दो दिन मुझे भी रामकथा में जाने का समय-सुयोग मिल गया। श्री बागेश्वरधाम सरकार श्री धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री पिछले 24 दिसंबर 2022 से होम गार्ड ग्राउँड पर रामकथा कह रहे हैं। मित्रों के आग्रह पर रामकथा पर नीचे लिखे आलेख का शीर्षक सोच रहा था। कई शीर्षक मन में आ-जा रहे थे, तभी गोलू के मुँह से निकले शब्द सुनकर, शीर्षक सोचने की कवायद खत्म हो गई।
नये मध्यप्रदेश में होम गार्ड (सेना) की स्थापना हुये, लगभग छह दशक बीत चुके हैं, पर, पिछले छह दिनों से होम गार्ड ग्राउँड का इतनी बार पता पूछा गया है कि पचास-पचपन सालों में भी इतनी बार होमगार्ड ग्राउँड का पता नहीं पूछा गया होगा। पिछले सप्ताह भर से वैसे तो देश भर से लोग आ रहे हैं। दमोह के पड़ौसी जिलों से भी हजारों भक्त-श्रोता आ ही रहे हैं। पर, खुद दमोह जिले भर के सैकड़ों गावों की सडकें दमोह पहुँच रहीं हैं और दमोह शहर की सारी सड़कें होमगार्ड ग्राउँड । मानों, लोग महाराज श्री के दर्शन की एक झलक पाने और उनकी रामकथा सुनने पागल हुए जा रहे हैं । तभी तो युवा संत- भक्त कवि-कोविद श्री धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री अपनी कथा में बार-बार दोहराते हैं- “अय, मेरे दमोह के पागलो, शांत हो जाओ”। उनका यह संबोधन सुनकर एक राष्ट्रीय राजनैतिक दल के नेता आरिफ बेग की याद हो आई, जो अपने श्रोताओं को “अय मेरे मुल्क के मालिको” कह कर अपना भाषण शुरू करते थे।
दमोह, अपनी आध्यात्मिक समारोह-धर्मिता के लिये भी जाना जाता रहा है। पर, दमोह के ज्ञात इतिहास में ऐसा अद्भुत, आश्चर्यजनक और अभूतपूर्व आध्यात्मिक आयोजन आज तक नहीं हुआ । रामकथा के अद्भुत विश्लेषक पं.रामकिंकर जी की रामकथा डायमंड सीमेन्ट ने लगभग 40 वर्ष पहले तहसील ग्राउँड पर कराई थी। पर, इस आयोजन से पूरे दमोह जिलावासी जान गये हैं कि सभी ग्राउँडों से बड़ा होमगार्ड ग्राउँड भी है, जिसे रामकथा के लिये पागल श्रोताओं ने छोटा साबित कर दिया है। सुबह से शाम तक, दमोह की सड़कों पर ऐसा जाम हम सबने पहली बार देखा है। कथा के मार्मिक-प्रसंगों से कथा वाचक अपने श्रोताओं को जितना रूलाते हैं, उससे ज्यादा हंसाते भी हैं। राम को मांगने आये, विश्वामित्र-दशरथ संवाद प्रसंग में यदि वे कथा को समेटते नहीं तो 9 दिन तक यही चलता रहता।
महाराज श्री कवि भी हैं और उन्हें जो धुन भा जाती है, उसे वे अपने भजन-गायन की धुन में रच लेते हैं। कमाल अमरोही निर्देशित “पाकीजा” में एक गीत है- “कोई मिल गया था राह में यूंही चलते-चलते”। अब, यह भजन देखिये- “राम मैं तुम्हें नहीं छोडूंगा, मरते-मरते। जीवन- ज्योति कब बुझ जाये, जलते-जलते। जीवन की यह सांस कब रूक जाये, चलते चलते”। रामकथा कभी समाप्त नहीं होती, इसलिए 2022 में शुरू रामकथा का केवल विश्राम होगा नये साल 2023 में। क्या, इसमें दमोह के लिये, दिव्य-दरबार का कोई गूढ़ रहस्य छिपा है?
रामकथा के आयोजकों को साधुवाद।