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दमोह। नगर की नाट्य संस्था युवा नाट्य मंच के द्वारा आयोजित दो दिवसीय नाट्य समारोह के दूसरे दिन युवा नाट्य मंच के द्वारा वरिष्ठ रंगकर्मी राजीव अयाची के द्वारा रचित व निर्देशित नाटक बुंदेला विद्रोह का मंचन किया गया। इस नाटक ने जहां लोगों को इतिहास की अनछुई घटनाओं से रूबरू कराया वहीं आजादी की लड़ाई में बुंदेलखंड की माटी के सपूतों को अपनी आदरांजली भी कला के माध्यम से दी। नाटक की पृष्ठभूमि इतिहास की उन महत्वपूर्ण घटनाओं को समेटकर रची गई है जिसे इतिहास में उचित स्थान नहीं मिल सका। दरअसल सन 1857 का विद्रोह भारतीय स्वाधीनता संग्राम के इतिहास में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के रूप में जाना जाता है, लेकिन उससे भी 15 वर्ष पूर्व सन 1841 में बुंदेलखंड की धरती पर अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांति का बिगुल बज गया था जो सन 1843 तक जारी रहा। अंगे्रजी शासन को सत्ता से उखाड़ फेंकने के लिए बुंदेली राजाओं के सुनियोजित एवम संगठित विद्रोह को इस नाटक के माध्यम से दिखाया गया है। नाटक में क्रांति के अग्रणी नेता नरसिंहपुर हीरापुर के राजा हृदय शाह लोधी जो राजा के साथ अपनी जाति के मुखिया होने के अलावा समाज के अन्य वर्गों का प्रतिनिधित्व करते हुए अपे आव्हान पर समूचे बुंदेलखंड के समस्त जातियों के नागरिकों , किसानों , आस पास के राजाओ,जागीरदारों एवं प्रमुख लोगो ने  एक  साथ मिलकर इस क्रांति को आगे बढ़ाया। हांलाकि अंग्रेजों की फूट डालो राज करो  नीति और पैसों के दम पर अंग्रेजों ने बुंदेली सपूतों के अपने लोगों से ही इस क्रांति को कुचलवा दिया लेकिन फिर भी यह क्रांति आजादी की उस क्रांति को जला गई जो आगे जाकर एक आग में बदल गई, और 15 वर्ष बाद सन 1857 के गदर में वे अपने साथियों के साथ पुनः रणक्षेत्र में कूदें और अपनी शारीरिक परेशानियों को दरकिनार कर सभी आजादी के परवाने देश की आजादी के लिए अपने प्राण न्योछावर कर गए। 

खूबसूरती से दिखी बुंदेली नायकों की झलक

नाटक के निर्देशक व लेखक राजीव अयाची ने घटनाओं के ताने वाने को बहुत ही खूबसूरती से पिरोया है, और यह प्रयास किया है कि हर एक पात्र के साथ पूरा न्याय हो। इतिहास से जुटाई गई घटनाओं की जानकारी महत्वपूर्ण है, जिसमें निर्देशक की मेहनत दिखती है, इसके बाद भी पात्र दर्शकों के मनोरंजन से भी पीछे नहीं रहते है। बंुदेली संगीत व वाद्ययंत्र इस नाटक में भी अपनी महत्वपूर्ण उपस्थिति व महत्व को बताते है। वहीं नाटक की जो बात उसे सबसे ज्यादा खास बनाती है, वह है बच्चांे का शानदार अभिनय और आत्मविश्वास जो उन्हें किसी मंझे हुए रंगकर्मी के समकक्ष रखता है। नाटक में राजा हिरदेशाह -अनिल खरे, सूत्रधार1 .राजीव अयाची, सूत्रधार 2 दीक्षा सेन, कैप्टन स्लीमन -शिवानी बाल्मीक, अंग्रेज अफसर-दानिया खान, अंग्रेज सैनिक और गांववाले -आलिया खान, तनीषा खरे, वैष्णवी चौरसिया, सानिध्य खरे, अनुनय श्रीवास्तव, कोरस एवंम विभिन्न भूमिकाओं में – हरिओम खरे,अथर्व खरे, वेदांत अयाची,
नयन खरे, पारस गर्ग ,देवांश राठौर ,देवांश राजपूत ,प्रियांशु अयाची ,ध्रुव राय ,अभिनव श्रीवास्तव, महेंद्र पटेल ,अहकाम खान, संगीत , संयोजन- रवि बर्मन ,ढोलक देवेश श्रीवास्तव, ड्रम- राजेश श्रीवास्तव, अक्षत रैकवार, स्वर -लक्ष्मीशंकर सिंह रघुवंशी,दीक्षा सेन,महेंद्र पटेल,राजीव अयाची, प्रकाश संयोजन संजय खरे, वस्त्र विन्यास अमृता जैन,मंच सामग्री सहायक-राजबहादुर अग्रवाल,हेमेंद्र चंदेल की भूमिका रही।

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