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दमोह। (वरिष्ठ पत्रकार ठाकुर नारायण सिंह की कलम से) प्रदेश में ही आई.ए.एस. केडर के चार सौ से अधिक अधिकारी हैं। पर, कलेक्टर इनमें से केवल ५२ ही हैं। शासन का नीतिगत प्रयास होता है कि प्राय: सभी युवा आई.ए.एस. अधिकारियों को और अवार्डी अधिकारियों को भी इस पद पर कार्य करने का अवसर मिले। यह इसलिये कि कलेक्टर का पद अत्यंत विशिष्ट होता है। शासन-प्रशासन में इस पद की गरिमा और प्रतिष्ठा सर्वोपरि है और अधिकारी इसी पद से लोकतंत्र में सुशासन का ककहरा सीखते हंै। कलेक्टर जिले का मुखिया होता है, इसीलिये कलेक्टर पद की प्रतिष्ठा और गरिमा अत्यंत विशिष्ट होती है।
दो दिन पहले शुक्रवार ३० सितंबर २०२२ को जो कुछ हुआ, वह इस जिले के ६६ सालों के इतिहास में कभी नहीं हुआ। उस दिन, पथरिया से (बसपा) विधायक रामबाई ने कलेक्टर से जो अभद्र व्यवहार किया, उसकी सर्वत्र निंदा-आलोचना हो रही है, जो सहज और स्वाभाविक ही है। भले ही अपने क्षेत्रवासियों की समस्याओं को लेकर, उनका आक्रोश (उनकी खुद की नजर में) स्वाभाविक हो, पर, कलेक्टे्रट सभा कक्ष में सार्वजनिक रूप से उन्होंने कलेक्टर के साथ जो गाली-गलौच की, उसने जिले के मुखिया-पद की गरिमा-प्रतिष्ठा और खुद के विधायक पद की शालीनता, गरिमा-प्रतिष्ठा और सम्मान को तार-तार कर दिया। ऐसे में, मानवीय गरिमा का पक्षधर एक भी व्यक्ति उनके साथ खड़े होने का साहस नहीं कर सकता।
आज से ६६ साल पहले एक नवंबर १९५६ को दमोह (फिर से) जिला बना था। तब शासन ने इस तिथि से एक माह पूर्व ही एक अक्टूबर १९५६ को इस नये दमोह जिले के पहले कलेक्टर के रूप में श्री एस.एन.राबरा को नियुक्त किया था। तब से अब तक दमोह में साढ़े तीन दर्जन अधिकारी कलेक्टर रह चुके हैं। वर्तमान कलेक्टर एस.कृष्ण चैतन्य, इस जिले में ४२वें कलेक्टर हैं। यद्यपि, कलेक्टर कार्यालय पटल पर उनका नाम ४३वें क्रम पर है। यह इसलिये कि स्वतंत्र कुमार सिंह के जाने के बाद कुछ सप्ताह तक प्रभारी रहे एक नान आईएएस अधिकारी ने भी अपना कलेक्टरों की सूची में नाम जड़वा दिया था। ६६ वर्षों में ४२ कलेक्टर के हिसाब से प्रत्येक के कार्यकाल का औसत डेड़ वर्ष के आसपास रहा। करीब आधा दर्जन कलेक्टरों ने पौने ३ साल से लेकर साढ़े तीन-चार साल यहां बिताये। ४२ कलेक्टरों की इस लंबी सूची  में अच्छे-बुरे कार्यकाल वाले सभी तरह के अधिकारी आये और लोकतंत्र भी युवा से प्रौढ़ होता गया। हाथी मारने वाले कलेक्टर सरदार ए.ए.चालुक्य पाटिल कहा करते थे- मैं सरदार ए.ए.चालुक्य पाटिल जिल्ला पिता, एंड माई वर्ड इज ला। चैम्बर में बेंत घुमाने के शौकीन एनके वैद्य के विरूद्ध तो हम पत्रकारों ने ऐसा आंदोलन किया कि उन्हें हाथ जोड़कर क्षमा मांगनी पड़ी थी। यह सब लिखने का आशय यह है कि दमोह जिले की बढ़ती उम्र और कलेक्टरों की इस लंबी होती सूची के साथ शासन-प्रशासन और जनप्रतिनिधियों के चेहरे-मोहरे भी बदलते रहे हैं। हमारे नेताओं ने कुछ योजनाओं और कुछ भाषणों के माध्यम से जनपेक्षाओं को आसमान पर पहुंचा दिया है। वर्तमान कलेक्टर एस.कृष्ण चैतन्य ने गत वर्ष आठ मई २०२१ को दमोह कलेक्टर का कार्यभार संभाला था। वे अहिन्दी भाषी क्षेत्र से आते हैं। दमोह की पुरानी परंपरा के अनुसार वे भी यहां पहली बार ही कलेक्टर बने हैं। लोगों से ज्यादा मिलने-जुलने का शौक नहीं रखते। ग्रामीणजनों से तो संपर्क और संवाद बहुत ही कम न के बराबर है। लो प्रोफाईल में काम करने वाले सीधे-सादे सज्जन व्यक्ति हैं। करीबी बताते हैं कि निहायत ईमानदार हैं। ईमानदार को तो बेईमान भी सलाम करते हैं। पर, क्या एक अकेले इसी (ईमानदारी के) गुण से वे जिले की जनता को अच्छा प्रशासन दे सकते हैं। एक जानकार ने भी नाम उजागर न करने की शर्त पर यह भी बताया कि साहब की सिधाई का फायदा उठाकर उनके अधीनस्त सहयोगी और सहकर्मी खूब पेल रहे हैं।
एक बात अच्छी और एक बात अच्छी नहीं
यह जानकर अच्छा लगा कि विधायक रामबाई द्वारा किये गये अभद्र व्यवहार से आक्रोशित जिला प्रशासन के हजारों कर्मचारियों को कलेक्टर ने हड़ताल पर जाने से रोका और शासन-प्रशासन को सुचारू रूप से चलाने की सलाह-समझाईश दी। पर, यह जानकर अच्छा नहीं लगा जब कलेक्टर का अपमान हो गया तो अधीनस्त कहते हैं- ४५ में से ४१ मामले सुलझा दिये गये थे। ज्ञापनों से अखबारों में अब यह छपवाया जा रहा है कि रामबाई अनुचित और अपात्र लोगों को फायदा पहुंचाने प्रशासन पर दबाव बनाती हैं और अधिकारियों को जान से मारने तक की धमकी देती रही हैं। फिर अधीनस्त यह भी स्वीकारते हैं कि हाँ, कुछ समस्याएं जरूर थीं। याने गल्ती पर गल्ती। वहीं, एक मामले के विचारण के दौरान स्थानीय माननीय न्यायालय ने कलेक्टर कार्यालय की कार्यवाही पर टिप्पणी की-जिन्हें कलेक्टर सार्वजनिक रूप से सम्मानित करते हैं, बाद में बिना किसी आधार के उनके खिलाफ कार्यवाही की अनुशंसा करना सवाल खड़े करता है। यह सब शायद इसलिये हो रहा है कि कलेक्टर की जनसंवाद हीनता और सार्वजनिक जनसंपर्क के अभाव का चतुर अधीनस्तों ने भरपूर फायदा उठाया है, वरना उनके इस तरह सार्वजनिक अपमान की दुर्घटना नहीं होती। विधायक रामबाई पर लगाये जा रहे सभी आरोप सौ फीसदी गलत नहीं हैं। पर, चार साल में ४ कलेक्टर बदल गये, रामबाई पर कोई कानूनी कार्यवाही क्यों नहीं हुई।
इससे कौन इंकार करेगा कि जिपं उपाध्यक्ष से लेकर विधायक तक के कार्यकाल में रामबाई ने गरीबों का शोषण करने वाले निचले और मंझोले स्तर के सरकारी कर्मचारियों की घूसखोरी को कई बार उजागर किया है और उनके द्वारा अनेक बार घूस के पैसे, घूसखोरों से पीडि़तों को वापिस दिलाये गये हैं। वे पहली बार विधायक बनीं और इतनी सक्रिय रहीं कि समकक्षों को बहुत पीछे छोड़ दिया। पर, उनके एक दुव्र्यवहार ने फिलहाल उनके पिछले सारे अच्छे पर पोंछा फेर दिया है। सुधरने और संभलने का अवसर सबको मिलना चाहिये। विधायक रामबाई को भी और कलेक्टर के जिला प्रशासन को भी।

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