दमोह
संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार के सहयोग से नगर की नाट्य संस्था युवा नाट्य मंच के द्वारा आयोजित 19वें राष्ट्रीय नाट्य समारोह के दूसरे दिन युवा नाट्य मंच के द्वारा वरिष्ठ रंगकर्मी राजीव अयाची के द्वारा रचित व निर्देशित नाटक बुंदेला विद्रोह का मंचन किया गया। इस नाटक ने जहां लोगों को इतिहास की अनछुई घटनाओं से रूबरू कराया वहीं आजादी की लड़ाई में बुंदेलखंड की माटी के सपूतों को अपनी आदरांजली भी कला के माध्यम से दी। नाटक की पृष्ठभूमि इतिहास की उन महत्वपूर्ण घटनाओं को समेटकर रची गई है जिसे इतिहास में उचित स्थान नहीं मिल सका। दरअसल सन 1857 का विद्रोह भारतीय स्वाधीनता संग्राम के इतिहास में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के रूप में जाना जाता है, लेकिन उससे भी 15 वर्ष पूर्व सन 1841 में बुंदेलखंड की धरती पर अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांति का बिगुल बज गया था जो सन 1843 तक जारी रहा। अंगे्रजी शासन को सत्ता से उखाड़ फेंकने के लिए बुंदेली राजाओं के सुनियोजित एवम संगठित विद्रोह को इस नाटक के माध्यम से दिखाया गया है। नाटक में क्रांति के अग्रणी नेता नरसिंहपुर हीरापुर के राजा हृदय शाह लोधी जो राजा के साथ अपनी जाति के मुखिया होने के अलावा समाज के अन्य वर्गों का प्रतिनिधित्व करते हुए अपे आव्हान पर समूचे बुंदेलखंड के समस्त जातियों के नागरिकों , किसानों , आस पास के राजाओ,जागीरदारों एवं प्रमुख लोगो ने एक साथ मिलकर इस क्रांति को आगे बढ़ाया। हांलाकि अंग्रेजों की फूट डालो राज करो नीति और पैसों के दम पर अंग्रेजों ने बुंदेली सपूतों के अपने लोगों से ही इस क्रांति को कुचलवा दिया लेकिन फिर भी यह क्रांति आजादी की उस क्रांति को जला गई जो आगे जाकर एक आग में बदल गई, और 15 वर्ष बाद सन 1857 के गदर में वे अपने साथियों के साथ पुनः रणक्षेत्र में कूदें और अपनी शारीरिक परेशानियों को दरकिनार कर सभी आजादी के परवाने देश की आजादी के लिए अपने प्राण न्योछावर कर गए।
नाटक के निर्देशक व लेखक राजीव अयाची ने घटनाओं के ताने वाने को बहुत ही खूबसूरती से पिरोया है, और यह प्रयास किया है कि हर एक पात्र के साथ पूरा न्याय हो। इतिहास से जुटाई गई घटनाओं की जानकारी महत्वपूर्ण है, जिसमें निर्देशक की मेहनत दिखती है, इसके बाद भी पात्र दर्शकों के मनोरंजन से भी पीछे नहीं रहते है। बंुदेली संगीत व वाद्ययंत्र इस नाटक में भी अपनी महत्वपूर्ण उपस्थिति व महत्व को बताते है। वहीं नाटक की जो बात उसे सबसे ज्यादा खास बनाती है, वह है बच्चांे का शानदार अभिनय और आत्मविश्वास जो उन्हें किसी मंझे हुए रंगकर्मी के समकक्ष रखता है। कलाकारों में अंग्रेज सैनिक की भूमिका आरना जैन, आराध्यकांत वर्मन, सानिध्य खरे, अवनि जैन, वैष्णवी चैरसिया, आलिया खान, सौमिल श्रीवास्तव ने मस्ती के साथ की है, वहीं राजा एवं अन्य साथियों में प्रियांषु अयाची, नयन खरे और हनी राज भी मंझे हुए दिखाई देते है। मेजर स्टीमेन बनी दानिया खान, मधुकर शाह की भूमिका में वेंदात अयाची, ग्रामीणों में वंश साहू, देवांश सिंह भी अत्यंत प्रभावी रहे है। इसके अलावा राज बहादुर सिंह देवांश राठौर, मर्दान सिंह वने अथर्व खरे और केप्टन ब्राऊन बनी शिवानी वाल्मीक का कार्य अत्यंत प्रशंसनीय है। सूत्रधार की भूमिका में दीक्षा सेन, मुखबिर एवं ग्रामीण प्रिंस चैरसिया, राजा परीक्षित पारस गर्ग का अनुभव दिखता है। वहीं इन बाल व युवा कलाकारों की भीड़ में अमर सिंह महतो की भूमिका में हरिओम खरे, राजा हिरदेशाह अनिल खरे व दूसरे सूत्रधार राजीव अयाची अपनी भूमिकाओं को ठहराव के साथ मंच पर निभाते रहे। संगीत पक्ष महत्वपूर्ण है जिसे बुंदेली मिठास से डुबोया गया है और रवि कांत वर्मन का संगीत संयोजन, लक्ष्मीशंकर सिंह रघुवंशी , दीक्षा सेन , राजीव अयाची की गायकी व देवेष श्रीवास्तव व अक्षत रैकवार की ढोलक की थाप कहानी के साथ साथ चलती है। प्रकाश संयोजन में संजय खरे , अंशुल दुबे (म.प्र.नाट्य विद्यालय ) मंचनिर्माण में बृजेन्द्र राठौर व अमरदीप जैन व रूपसज्जा में अमृता जैन ने अपना कार्य मेहनत से किया है। वहीं आज समारोह के तृतिय दिवस रविवार को थियेटर शाइन कोलकाता का सुवोजित वंदोपाध्याय निर्देशित तोमार ढाको की प्रस्तुति दी जाएगी।