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दमोह से वरिष्ठ पत्रकार नारायण सिंह ठाकुर की समीक्षा मो. 9826313487


दमोह। दमोह में पिछले शनिवार 27 फरवरी 2021 को दमोह आये मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की बौद्धिकों की सार्वजनिक सभा में जो होना था, वह न होने से भाजपा की अंदरूनी कलह सतह पर आ गई है। इससे मलैया समर्थकों में रोष है, वहीं आमजन भी आज की स्वार्थी और निर्दयी राजनीति के प्रदर्शन से निराश और आहत हैं। जिसमें कुर्सी जाते ही व्यक्ति के विशिष्ट गुणों को नकार दिया जाता है। जयंत मलैया को राजनीति में आये, चार दशक होने को हैं। 1984 में जयंत मलैया ने भाजपा प्रत्याशी के रूप पहली बार उपचुनाव लड़ा था, तब भाजपा की आयु केवल 4 वर्ष र्थी। अपने इस पहले चुनाव में जयंत मलैया ने बहुत ही विषम परिस्थितियों में कांग्रेस प्रत्याशी डॉ. अनिल टंडन को रिकार्ड मतों से हराया था। तत्कालीन मुख्यमंत्री ने एक माह तक दमोह के सर्किट हाऊस में डेरा डालकर अहिर्निश चुनाव प्रचार किया था। इतना ही नहीं, उनका लगभग पूरा मंत्रिमंडल और निगमों आदि के सभी अध्यक्ष, पदाधिकारी और कांग्रेस के बड़े-बड़े सैकड़ों नेता सुबह से रात तक सड़कों पर घूमते नजर आते थे। कई बड़े नेताओं को रेस्ट हाऊसों और होटलों में जगह न मिलने पर कांग्रेस नेता (अब स्व.) महादेव प्रसाद गुप्ता के जबलपुर नाका स्थित कोल्ड स्टोरेज के बरामदों में दरी गद्दे बिछाकर रातें काटनी पड़ी थीं। हाल ही में स्वर्गवासी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता तथा मुख्यमंत्री रहे मोतीलाल वोरा विद्युत मंडल के रेस्ट हाऊस में रूके थे। (स्व.) विट्ठलभाई पटेल को भी अपनी कुछ रातें गुप्ताजी के कोल्ड स्टोरेज में गुजारनी पड़ी थी। खुद, मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह अपने आवश्यक दौरों के बाद दमोह सर्किट हाऊस में ही शरण लेते थे। दमोह जिले के हजारों प्रभावशाली समझे जाने वाले लोगों के साथ ही, शायद दमोह जिले का कोई सरपंच रहा हो, जिसे मुख्यमंत्री के बुलावे पर सर्किट हाऊस न आना पड़ा हो। इतना सब करने के बाद भी कांग्रेस को अपनी सीट करीब 10 हजार मतों से गंवानी पड़ी। जयंत मलैया पहली बार विधायक बने।
6 माह बाद के आम चुनाव में कांग्रेस (प्रत्याशी मुकेश नायक) ने जयंत मलैया को मामूली अंतर से हराकर दमोह सीट पुनः अपने कब्जे में कर ली। उन्हीं दिनों की एक सहकथा और याद आती है जिसमें (विधायक पुत्र) मल्लन हत्याकांड की जांच सीबीआई कर रही थी। इसमें दमोह के दर्जनों युवाओं सहित अर्जुन सिंह सरकार में संसदीय सचिव रत्नेश सालोमन को भी सीबीआई पूछताछ हेतु दिल्ली ले गई थी। नब्बे के दशक में हुए, आम चुनाव मे जयंत मलैया फिर जीते तो फिर उन्होंने 2018 की हार तक पीछे मुड़़कर नहीं देखा। 37 साल की राजनीति में दमोह की पहचान बन चुके जयंत को 27 फरवरी को मुख्यमंत्री की मौजूदगी में फिर जोरदार धक्का दमोह के जनमानस ने भी महसूस किया, जब उन्हें विशेष मान-सम्मान और उचित महत्व न देकर उपेक्षित किया गया। ये वही जयंत मलैया हैं, जिनके एक चुनाव के प्रचार में आई सुश्री उमा भारती ने (इस संवाददाता से) कहा था ‘‘दमोह के लोग विधायक ही नहीं, भविष्य के मुख्यमंत्री को भी चुन रहे हैं।’’
मुख्यमंत्री भी वही शिवराज चौहान थे, जो अपने वित्तमंत्री और भाजपा के कदावर नेता जयंत मलैया की प्रशंसा करते नहीं अघाते थे। इतनी धनवान भाजपा ने इतनी कृष्णता दिखाई कि छोटे से आमंत्रण पत्र के ढेरों नामों के बीच उसे जयंत मलैया के नाम की जगह नहीं बची। पता नहीं, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जयंत मलैया के बारे में कितना जानते हैं, पर इतना पता है कि वे जयंत मलैया को दमोह की जनता से ज्यादा नहीं जानते। संभव है, जयंत मलैया ने ऐसे कुछ काम किये होंगे, जिनसे जनता नाराज हो गई और उन्हें पराजय का स्वाद चखना पड़ा।

ऐसे भी सांसद विधायक हुए हैं दमोह जिले में
साठ साल पहले के अर्थात 1960 तक के नेताओं के बारे जब जानेंगे, तो विश्वास ही नहीं होगा। बचपन से जो पढ़ा-सुना और कुछ-कुछ देखा भी, उसकी बानगी देखिये। सांसद बनने से पहले जो सागर में (नाम शायद रामप्रसाद) चौधरी बीड़ी भांजते थे। जब सांसद नहीं रहे तो फिर से सूपा गोद में रखकर बैठ गये। सांसद सहोद्रा राय के दुर्भाग्यपूर्ण अंतिम दिनों को भला कौन भूल सकता है? खुद अपने इसी दमोह में जगन चौधरी ने पथरिया से एम.एल.ए. न रहने के बाद फिर से पालिका की सवा रूपये की बेलदारी शुरू कर दी थी। इसी पथरिया से जीवनलाल चौधरी विधायक न रहने के बाद फिर से जूते बनाने और जूतों की मरम्मत करने वाली अपनी छोटी सी दुकान पर बैठकर आम आदमी के पैरों का नाप लेने लगे थे। तब, राजनीति पेशा या धंधा नहीं होती थी। आज, राजनीति क्या है, इसे पब्लिक भलीभांति जानने लगी है।
कुर्सी छोड़, आज जयंत मलैया के पास भी क्या कुछ नहीं है जो नेताओं के पास होता है। उनके पास एक चीज और है, जिनमें कई नेता बेहद गरीब हैं। उनका हंसमुख, विनम्र और मिलनसार व्यवहार। उनकी लोकप्रिय छवि। उनके कुछ ऐसे काम जो व्यक्तिगत भी हैं और समूहगत भी। प्रकृति के अनुसार जब-जब कुर्सी उनके सिर चढ़ी, उन्होंने सावधानी से उसे नीचे उतारकर उसकी सही जगह पर बिठाया। गरीब अभावग्रस्त और दीन दुखी मरीजों की भी उन्होंने मंत्री रहते खूब मदद की। अपनी गांठ भी ढीली करते रहे।
अभी, जब उपचुनाव के मतदान की तारीख भी घोषित नहीं हुई, तो दमोह का नया विधायक कौन-कैसा होगा, क्या कह सकते हैं। पर, एक बात जरूर कहना चाहते हैं कि जिताने हराने की ताकत जनता के पास ही रहना चाहिए जैसे उसने 2018 में जयंत मलैया को हरा दिया था और राहुल को जिता दिया। अब फिर उसी जनता की बारी है।

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