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वरिष्ठ पत्रकार नारायण सिंह ठाकुर की कलम से।

आज 17 मई के समाचार-पत्र में एक बड़ी खबर छपी है। खबर है कि इन दिनों नगर में कायाकल्प अभियान के अंतर्गत नगर में सडक़ निर्माण का जो काम चल रहा है, वह बहुत ही घटिया किस्म का है। साढ़े तीन करोड़ की राशि से बनने वाली सडक़ों के निर्माण में केवल लत्ता लपेड़ी करके इस राशि को ठिकाने लगाया जा रहा है और निर्माण एजेंसी ने गुणवत्ता और मानक स्तर को दर किनार करके, मनमर्जी से दोनों ओर ३-३, ४-४ फुट जगह छोडक़र सडक़ें बना डाली हैं। न तो अतिक्रमण हटाये और न ही उतनी चौड़ी सडक़ें बनाईं, जितनी वे पहले बनी थीं। कहीं-कहीं तो डामर की एक पतली पर्त बिछाकर सडक़ निर्माण की इतिश्री कर दी। 
एक स्थान पर तो सडक़ पर खड़ी एक कार को हटवाने की भी जहमत नहीं उठाई। सडक़ पर खड़ी कार के बाजू से ही सडक़ बना डाली। इन सारी अनियमितताओं को लेकर नगर के एक जागरूक अधिवक्ता (मुकेश पांडेय) द्वारा जिला न्यायालय में लोकोपयोगी याचिका दायर की गई। इस पर संज्ञान लेते हुए माननीय जिला न्यायालय ने मुनपा अधिकारी नगर पालिका प्रबंधक एमपीआरडीसी, लोक निर्माण विभाग और कलेक्टर दमोह को नोटिस जारी करते हुए आगामी २५ मई २०२३ को न्यायालय में तलब कर जवाब देने का आदेश दिया है।
माननीय जिला न्यायालय द्वारा समस्त विभागीय अधिकारियों के साथ ही दमोह कलेक्टर को तलब करना क्या दर्शाता है? यही न कि जिले में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। वर्तमान कलेक्टर को तो पदभार संभाले अभी पचास दिन भी पूरे नहीं हुए हैं, पर जिले में जिला प्रशासन का इकबाल कब से सुस्त पड़ा हुआ है और कहीं उसकी कोई धमक का मान नहीं होता। उम्मीद की जानी चाहिए कि जिला और पुलिस प्रशासन में व्यापक फेरबदल के बाद, व्यवस्था पटरी पर आयेगी और इस जिले में जनसमस्याओं का समाधान और कानून व्यवस्था की व्यवस्था सुधरेगी, ताकि जिला प्रशासन को भविष्य में ऐसी स्थिति से रूबरू न होना पड़े। और, माननीय न्यायालय का बहुमूल्य समय भी बच सके।
यहां, अक्षय कुमार स्टारर फिल्म जॉली एल-एल बी-2 का एक न्यायालयीन संवाद याद आता है। न्यायाधीश महोदय कहते हैं कि आमजन को यह भरोसा होता है कि उनकी नेता नहीं सुनेंगे, अफसर नहीं सुनेंगे, शासन-प्रशासन नहीं सुनेंगे पर न्यायालय उनकी बात अवश्य सुनेगा। इस कुर्सी पर बैठने वाले हर व्यक्ति का यह कत्र्तव्य है कि वह जनता के इस भरोसे को टूटने न दे। 

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