दमोह। (वरिष्ठ पत्रकार नारायण सिंह ठाकुर की कलम से)। इस संवाददाता ने 7 व 8 फरवरी को 2 दिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश के करीब 20 जिलों की निजी यात्रा की। इसी दौरान 7 फरवरी को उत्तरप्रदेश के शाहजहांपुर में रात्रि विश्राम किया। जाने आने के इस सफर में करीब 20 जिलों से जाना आना हुआ। इस बीच जो कुछ देखा-सुना, उसी का आंखों देखा हाल यहां प्रस्तुत है। उत्तरप्रदेश में स्थित शाहजहांपुर, दमोह से लगभग 700 किलोमीटर दूर है। प्रदेश की राजधानी लखनऊ से शाहजहां के नाम पर बसे
इस पुराने शहर की दूरी करीब 170 किमी है। ललितपुर जिले से उत्तरप्रदेश में प्रवेश कर, ललितपुर, झांसी, जालौन, उरई, औरैया, फर्रूखाबाद आदि जिलों से होकर करीब 14 घंटों में शाहजहांपुर पहुंचना हुआ। इस शहर में विधानसभा की 6 सीटें हैं। इनमें से शाहजहांपुर सहित 3 सीटों पर वर्तमान में भाजपा का कब्जा है। जिला मुख्यालय की विस सीट पर इस बार भी उत्तरप्रदेश के वित्तमंत्री सुरेश खन्ना नौंवी बार जीत की हैट्रिक बनाने के लिए चुनाव लड़ रहे हैं। मुख्य मुकाबले में समाजवादी पार्टी ने एक मुस्लिम प्रत्याशी पर दांव लगाया है, जबकिसपा ने शाहजहांपुर से एक ब्राम्हण को टिकिट से नवाजा है। यहां आज 10 फरवरी को प्रथम चरण के लिये वोट डाले जायेंगे। शाहजहांपुर के साथ ही आज 57 अन्य सीटो्रं पर पहले चरण के लिये मतदान होगा। जातिगत समीकरण की बात करें, तो उत्तरप्रदेश का यह इलाका मुस्लिम मतदाताओं से भरा पूरा है। खुद शाहजहांपुर में भी मुस्लिम मतदाता करीब 40 प्रतिशत से अधिक हैं। यहां भी चुनावी शोरगुल के नाम पर
सन्नाटा पसरा हुआ है। 8 फरवरी को लगता ही नहीं था कि एक दिन बाद यहां चुनावी घमासान होने वाला है। सब चुपचाप, शांति से अपने रोजमर्रा के कामों में व्यस्त थे। जिस होटल में इस संवाददाता को ठहराया गया था, वह क्षेत्र शहर के बीचोंबीच चहल-पहल वाला इलाका है। इसके बावजूद वहां से दोपहर 12 बजे से रात्रि 8 बजे तक चुनाव की इक्का दुक्का गाडि़यां ही नजर आईं। वे भी फर्ज अदाएगी करती ही समझ में आईं। शाहजहांपुर वासी अपने शहर के साथ ही समूचे उत्तरप्रदेश में भाजपा की जीत के प्रति आश्वस्त दिखे। मुख्य मुकाबला भाजपा और सपा में ही नजर आता है। लोग कहते हैं कांग्रेस का क्या पूछते हो, वह तो चुनाव से पहले ही चुनाव से बाहर हो चुकी है।
जिस क्षेत्र से होकर गंतत्वय तक पहुंचे, वह बेहद पिछड़ा और अविकसित नजर आया। बस, दो चीजें मुख्य नजर आईं एक तो इस क्षेत्र में राह में पानी से लबालब भरी, लंबी-चौड़ी नहरें, नजर आईं; दूसरा इनके रिसाब के पानी से खेतों में हरी भरी फसलें और खतों में ईटें पकाने वाले मेट की ऊंची-ऊंची चिमनियां। शासन की नई नवेली जनकल्याण की योजनाओं का
यहां कहीं दीदार नहीं हुआ। और न ही अधो संरचना निर्माण के दर्शन हुए। अनेक लोग बेकार बैठे दिखे। जो दुकानें बंद मिली। जन संख्या घनत्व की दृष्टि से कहीं जंगल नजर नहीं आए और 700 किमी की यात्रा में कोई ऐसी जगह नहीं दिखी, जहां लगातार एक किलोमीटर की जगह खाली हो। 10-20 या 50-100 फीट के अंतर से घर बनाकर आबादी बसती है। अनेक बार सड़कों पर उत्तरप्रदेश राज्य परिवहन की खटारा बसों के भी दर्शन हुए। जाने की यात्रा में कहीं भी अच्छी नई और चौड़ी सड़कें नहीं दिखी। हाईवे की सड़कें भी केवल नाम की हाईवे थीं। उत्तरप्रदेश में जिलों के नाम जनपद कहलाते हैं, सो अनेक साईन बोर्ड पर गांव कस्बों के साथ जनपद का नाम भी लिखा नजर आया। रात में दो-एक जगह पुलिस ने हमारे बैग खुलवाकर देखे गये और की पहली सीट पर बैठे कार मुखिया के नाम, मोबाइल नंबर नोट किये गये और कारों की चारों एंगल से फोटो खीचें गये।
वापिस की यात्रा में कम समय और अच्छी सड़क की आस परिवर्तित मार्ग से आना हुआ। षाहजहांपुर से हरदोई जनपद, उन्नाव, आगरा एक्सप्रेस वे के दर्षन हुए और उन्नाव के बांगरमउ के एक ढावे पर जब कुछ लोगों से चुनाव के बारे में पूछा तो उत्तर मिला िकइस बार उत्तरप्रदेष में क्या होगा, हमें तो कुछ समय में आता। आप तो पत्रकार हैं, आप ही बताइये कि इस बार कौन जीतेगा, किसकी सरकार बनेगी, उनके हिसाब से यह बेकार की पूछताछ थी, जिसका हम से कोई उत्तर देते नहीं बना। हमें यही लगा कि या तो चुनाव चर्चा में उनकी कोई रूचि नहीं है या फिर उन्होंने सोचा होगा कि जब वोट देने का दिन आएगा तब सोचा देखा जाएगा।